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ये त्वा॑हि॒हत्ये॑ मघव॒न्नव॑र्द्ध॒न्ये शा॑म्ब॒रे ह॑रिवो॒ ये गवि॑ष्ठौ। ये त्वा॑ नू॒नम॑नु॒मद॑न्ति॒ विप्राः॒ पिबे॑न्द्र॒ सोम॒ꣳ सग॑णो म॒रुद्भिः॑ ॥६३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। त्वा। अ॒हि॒हत्य॒ इत्य॑हि॒ऽहत्ये॑। म॒घ॒वन्निति॑ मघऽवन्। अव॑र्द्धन्। ये। शा॒म्ब॒रे। ह॒रि॒व इति॑ हरिऽवः। ये। गवि॑ष्ठा॒विति॒ गोऽइ॑ष्ठौ ॥ ये। त्वा। नू॒नम्। अ॒नुमद॒न्तीत्य॑नु॒मद॑न्ति। विप्राः॑। पिब॑। इ॒न्द्र॒। सोम॑म्। सग॑ण॒ इति॒ सऽग॑णः। म॒रुद्भि॒रिति॑ म॒रुत्ऽभिः॑ ॥६३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:63


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) उत्तम पूजित धनवाले सेनापति ! (ये) जो (विप्राः) बुद्धिमान् लोग (अहिहत्ये) जहाँ मेघ का काटना और (गविष्ठौ) किरणों की संगति हो, उस संग्राम में जैसे किरणें सूर्य के तेज को वैसे (त्वा) आपको (अवर्द्धन्) उत्साहित करें। हे (हरिवः) प्रशंसित किरणों के तुल्य चिलकते घोड़ोंवाले शूरवीर जन ! (ये) जो लोग (शाम्बरे) मेघ-सूर्य के संग्राम में बिजुली के तुल्य (त्वा) आपको बढ़ावें (ये) जो (नूनम्) निश्चय कर आपकी (अनुमदन्ति) अनूकूलता से आनन्दित होते हैं और (ये) जो आपकी रक्षा करते हैं। हे (इन्द्र) उत्तम ऐश्वर्यवाले जन ! (मरुद्भिः) जैसे वायु के (सगणः) गण के साथ सूर्य रस को ग्रहण करे, वैसे रस को ग्रहण करे, वैसे मनुष्यों के साथ (सोमम्) श्रेष्ठ ओषधि रस को (पिब) पीजिये ॥६३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे मेघ और सूर्य के संग्राम में सूर्य का ही विजय होता है, वैसे मूर्ख और विद्वानों के संग्राम में विद्वानों का ही विजय होता है ॥६३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजधर्मविषयमाह ॥

अन्वय:

(ये) (त्वा) त्वाम् (अहिहत्ये) अहेर्मेघस्य हत्या हननं यस्मिँस्तस्मिन् (मघवन्) परमपूजितधनयुक्त सेनापते (अवर्द्धन्) वर्द्धयेयुः (ये) (शाम्बरे) शम्बरस्य मेघस्याऽयं सङ्ग्रामस्तस्मिन् (हरिवः) प्रशस्ता हरयः किरणा इवाऽश्वा विद्यन्ते यस्य तत्सम्बुद्धौ (ये) (गविष्ठौ) गवां किरणानां सङ्गत्याम् (ये) (त्वा) त्वाम् (नूनम्) निश्चितम् (अनुमदन्ति) आनकूल्येन हृष्यन्ति (विप्राः) मेधाविनः (पिब) (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त विद्वन् (सोमम्) सदौषधिरसम् (सगणः) गणैः सह वर्त्तमानः (मरुद्भिः) वायुभिरिव मनुष्यैः ॥६३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मघवन् ! ये विप्रा अहिहत्ये गविष्ठौ सूर्यमिव त्वावर्द्धन्। हे हरिवो ये शाम्बरे विद्युतमिव त्वावर्धन्, ये नूनं त्वामनुमदन्ति, ये त्वां रक्षन्ति। हे इन्द्र ! तैर्मरुद्भिः सह सगणः सूर्यो रसमिव मनुष्यैः सह सोमं पिब ॥६३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा मेघसूर्यसङ्ग्रामे सूर्यस्यैव विजयो जायते तथा मूर्खाणां विदुषाञ्च संग्रामे विदुषामेव विजयो भवति ॥६३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. मेघ व सूर्य यांच्या संग्रामात जसा सूर्याचा जय होतो, तसे मूर्ख व विद्वान यांच्या संघर्षात विद्वानांचा विजय होतो.